Madhu varma

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लेखनी कविता - मधि का अंग -कबीर

मधि का अंग -कबीर 

'कबीर' दुबिधा दूरि करि,एक अंग ह्वै लागि ।
 यहु सीतल बहु तपति है, दोऊ कहिये आगि ॥1॥

दुखिया मूवा दुख कौं, सुखिया सुख कौं झुरि ।
 सदा अनंदी राम के, जिनि सुख दुख मेल्हे दूरि ॥2॥

काबा फिर कासी भया, राम भया रे रहीम ।
 मोट चून मैदा भया ,बैठि कबीरा जीम ॥3॥

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